Monday 3 September 2012

न्यायाधीश नहीं तय कर सकते गरीबी रेखा: सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट
 

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि गरीबी रेखा तय करना योजना आयोग जैसे विशेषज्ञ निकाय का काम है और न्यायपालिका देश की आर्थिक नीतियां नहीं तय कर सकती. न्यायालय का यह आदेश इस बात का संकेत है कि न्यायपालिका को आगे बढ़कर कार्यपालिका और सराकार के कार्यक्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए.
न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि यह कार्य विशेषज्ञ निकायों पर छोड़ दिया जाना चाहिए. गरीबी रेखा की समीक्षा करना बहुत कठिन है. हम आर्थिक नीति तय नहीं कर सकते.
न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलिफुल्ला की खंडपीठ ने यह बात तब कही जब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने न्यायालय का ध्यान गरीबी रेखा के निर्धारण का आधार काफी कम यानी 32 रुपये प्रतिदिन की आय माने जाने की ओर आकृष्ट किया. यह एक ऐसा मुद्दा है जो देश में विचारणीय बहस की मांग करता है.
गोंसाल्विस ने दलील दी कि सरकार अपनी जवाबदेही से भाग नहीं सकती, खासकर समाज के कमजोर वर्ग के संदर्भ में. वहीं न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को ऐसे सुझाव देने चाहिए जिन पर सरकार के कामकाज में दखल दिए बगैर अमल किया जा सके. गोंसाल्विस की दलील पर असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि संविधान में यह कहां लिखा है कि खाद्य सामग्री पर रियायत दी जानी चाहिए? उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा काल्पनिक है. इसकी प्रासंगिकता केवल रियायत देने के संदर्भ में है.
इसके विपरीत, न्यायमूर्ति भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने कुछ दिन पूर्व सरकार को कठघरे में खड़ा किया था और उसे गरीबी रेखा से नीचे के मानदंड में संशोधन करते हुए शहरी इलाकों के लिए न्यूनतम आय 32 रुपये प्रतिदिन तथा ग्रामीण इलाकों के लिए 26 रुपये प्रतिदिन तय करने को विवश किया था. यहां तक कि इसी खंडपीठ ने बाद में योजना आयोग से सवाल किया था कि उसने किस आधार पर शहरी इलाकों के लिए 32 रुपये और ग्रामीण इलाकों के लिए 26 रुपये प्रतिदिन की आय पर गरीबी रेखा तय कर दी.
उल्लेखनीय है कि प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया ने भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान और फिर बाद में न्यायाधीशों से कहा था कि वे सरकार एवं विधायिका के अधिकार क्षेत्र में दखल देने से पूर्व अच्छी तरह सोच-विचार लें.